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माननीय महोदय, मेरा निवेदन इस प्रकार है कि हम पर बाहर से बार-बार आक्रमण हुए। विदेशियों की विजय हुई पर ग्राम पंचायतें अपने स्थान पर ज्यों की त्यों बनी रहीं। अंग्रेजी शासन के विस्तार के फलस्वरूप अन्य संस्थाओं के बिखर जाने के साथ-साथ ये पंचायतें भी नष्ट हो गईं। माननीय महोदय, मेरा निवेदन इस प्रकार है कि जिस समय हम लोग ब्रिटिश सरकार से भारत के लिए स्वराज्य प्राप्त करने के प्रयत्न में लगे हुए थे उस समय गाँव-गाँव में जो कांग्रेस कमेटियाँ स्थापित हुईं वे एक प्रकार से पंचायतें ही तो थीं पर उस समय हमारे हाथों में अधिकार नहीं था और जो पंचायतें स्थापित हुईं वे जनता की इच्छा से ही स्थापित हुईं। हमारे हाथों में जब अधिकार आया तो उस समय ये ग्राम पंचायतें सभी स्थानों पर थीं। संविधान बनाते समय भी यही सोचा गया कि ऊँची व्यवस्थापिका सभाओं तक पहुँचने के लिए पंचायतें ही सबसे पहली कड़ी होंगी। उसके बाद सभी प्रदेशों और राज्यों की सरकारों ने पंचायत संबंधी कानून पास किए और पंचायतें स्थापित होने लगी थीं। इस समय प्रायः सभी राज्यों में पंचायतें हैं। यह दूसरी बात है कि कहीं पर उनका काम भली-भाँति चल रहा है और कहीं उतने सुचारू रूप से नहीं चल रहा। आज यह सुनकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई कि आपके इस राज्य में पंचायतों को ठीक रूप से चलाने पर बड़ा जोर दिया जा रहा है। जिनका काम सबसे अच्छा और सुंदर समझा जाता है उनको पुरस्कार दिया जाता है। इसलिए मैंने आपकी ओर से आज दो-चार पंचायतों के मुखिया लोगों को अनुदान दिया। मैं उनको बधाई भी देना चाहता हूँ कि उनका काम चार हजार ग्राम पंचायतों में सबसे अच्छा समझा गया। हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि पहले की हमारी पंचायतें क्यों मिट गईं? हमारे देश में पंचायतें परंपरा से चली आ रही थीं। अंग्रेजों ने भी मुक्त कंठ से इस बात को स्वीकार किया था कि भारत का प्रत्येक गाँव गणराज्य था पर एक समय आया जब गाँव स्वतंत्र गणराज्य न रहे और देश परतंत्र हो गया। इसका कारण हममें कमजोरियों का आना था। हमें उन कमजोरियों से अभी भी बचते रहना चाहिए जिससे फिर से वह दिन न देखना पड़े। माननीय महोदय, मेरा निवेदन इस प्रकार है कि वह कमजोरी थी उन पंचायतों का संकीर्ण दृष्टिकोण। लोगों ने पंचायतों की परिधि के क्षेत्र को ही अपना देश माना और इस कारण जब एक पंचायत पर आक्रमण हुआ तो दूसरी पंचायतों उसकी रक्षा में हाथ बँटाना
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